मैं अकसर खुद को खुद से ही छिपाती हूं,
और दर्पण देख सहम जाती हूं।
मैं अकसर खुद में ही उलझ जाती हूं,
और रूबरू होने पर घबरा जाती हूं।
मैं अकसर ख़्वाबों में खो जाती हूं,
और भटकने पर टूट जाती हूं।
मैं अकसर खुद को ही समझाती हूं,
और जानने पर बिखर जाती हूं।
मैं अकसर खुद को ही खोजती हूं,
और मिलने पर भाग जाती हूं।
मैं अकसर ख्यालों में रहती हूं,
और डूबने पर सब भूल जाती हूं।
मैं अकसर खुशियां तलाशती रहती हूं,
और हासिल होने पर उदास हो जाती हूं।
मैं अकसर सोच में बन्धी रहती हूं,।
और आज़ाद होने पर वजूद खो बैठती हूं।
मैं अकसर सादगी की कामना करती हूं,
और इन्द्रधनुष देख आंखें मूंद लेती हूं।।

मैं अकसर खुद को खुद से छिपाती हूं
Subscribe
Login
0 Comments